पूर्ण आन्तरिक परावर्तन का व्याख्या
जब भी प्रकाश की किरण जो होती है वो संघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है और तो आपतन कोण का मान बढ़ाने पर अपवर्तन कोण का जो मान है वो भी बढ़ता ही है। आपतन कोण के जिस मान के लिए अपवर्तन कोण का मान 90° हो जाता है उसे क्रान्तितक कोण (Critical Angle) कहते है। इसे θc से प्रकट करते हैं।
µ sin θc = uw sin 90°
जब आपतन कोण का मापन θc से बड़ा हो जाता है तो प्रकाश की किरण पहले माध्यम में ही परावर्तित हो जाती है। इस परिघटना को पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (TIR) कहते हैं।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए निम्न दो प्रतिबन्ध आवश्यक होते हैं।
- प्रकाश संघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर चलता है।
- संघन माध्यम में आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से बड़ा होता है (i> θc)।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन पर आधारित कुछ घटनाएँ
- हीरा इसलिए चमकता है क्योंकि हीरे के अन्दर जो होता है वो बार-बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता रहता है।
- रेगिस्तान में मरीचिका (mirage) का आभास जरूरी होता है क्यूंकि जिसमें दूर स्थित वस्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है और कुछ इस ऐसा आभास होता है कि कहीं पास में ही जल उपस्थित है, जिसके कारण यह उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा है और जबकि वास्तव में इस प्रकार का कुछ ऐसा नहीं होता है।
- ठण्डे प्रदेशों में उनमरीचिका (looming) का भी आभास होता है जिसमें पृथ्वी पर स्थित वस्तु हवा में लटकी हुई प्रतीत होती है।
- जल के अन्दर वायु का बुलबुला भी चमकता हुआ हम लोगों को दिखाई देता है।
- पानी से अंशत: भरी हुई परखनली को पानी से भरे बीकर में डुबोने पर परखनली का खाली भाग चाँदी की भाँति चमकने लगता है।
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