What is the Theory of Radioactive Disintegration

What is the Theory of Radioactive Disintegration

प्रिय मित्रों, आज हम आपके बीच What is the Theory of Radioactive Disintegration को साँझा कर रहे है | इस What is the Theory of Radioactive Disintegration पोस्ट में रेडियोएक्टिव किरणों की खोज से लेकर थ्योरी तथा α, β तथा γ-कणों  से सम्बन्धित जानकारी आप को आसानी से मिल जाएगी | इस पोस्ट में उपर्युक्त विषय से से सम्बन्धित निम्नलिखित बिंदु है : समूह विस्थापन नियम, रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणी, अर्द्ध-आयु काल, रेडियो समस्थानिक डेटिंग, रेडियो समस्थानिकों के उपयोग से सम्बन्धित जानकारी विद्यमान है जिसको पढने के बाद रसायन विज्ञान विषय की तैयारी भालिंभाती पूरा कर सकते है

👉What is the Theory of Radioactive Disintegration

रेडियोएक्टिव किरणों की खोज करने के बाद सन् 1903 में वैज्ञानिक रदरफोर्ड तथा सोडी ने रेडियोऐक्टिव तत्वों के बारे में तथ्यों को स्पष्ट किया और रेडियोऐक्टिव विघटन का सिद्धान्त भी दिया तथा यह भी बताया की रेडियोऐक्टिव तत्वों के नाभिक अस्थायी हैं और स्थायी नाभिक का निर्माण तबतक नहीं होता जबतक तत्वों के नाभिक जो है वह स्वतः ही उस अवस्था तक विघटित होते रहते हैं | नाभिकीय विघटन की जो दरें है वो बाह्य कारकों पर निर्भर नहीं करती है जैसे-दाब, ताप आदि| विघटन के फलस्वरूप नाभिक से α, β तथा γ-कणों का उत्सर्जन होता है।

नाभिक का आकार बहुत छोटा होता है, छोटे होने के कारण उसमे कारण प्रोटॉन-प्रोटॉन के बीच में प्रतिकर्षण बल कार्य करता रहता है और प्रतिकर्षण बल कार्य को कम करने का काम न्यूट्रॉन की उपस्थिति करती है  नाभिक का स्थायित्व न्यूट्रॉन के अनुपात (n/p) पर निर्भर करता है। स्थायी नाभिकों के लिए जो न्यूट्रॉन/प्रोटॉन का अनुपात होता है वो 1 1.6 होता है और एल्फा, बीटा तथा गामा  तीनों किरणे मानव के लिए घातक प्रतीत होती हैं। तीनों किरणों में से गामा किरणें सबसे अधिक घातक होती हैं।

α-उत्सर्जन (α -Emission)

α – कण जो होते है वे हीलियम का नाभिक होते है। इसके उत्सर्जन के बाद परमाणु द्रव्यमान में 4 इकाई की कमी हो जाती है और परमाणु क्रमांक में 2 इकाई की कमी हो जाती है।

उदाहरण के लिए

92U^238 → 90Th^234 +2H^4

β- उत्सर्जन (β-Emission)

β-कण इलेक्ट्रॉन (-1e^o) होते हैं | β-कण उत्सर्जन पर परमाणु के द्रव्यमान में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है लेकिन परमाणु क्रमांक में 1 इकाई की वृद्धि होती हैं।

उदाहरण

90Th234 →  90Th234 +  -1eo

 

γ उत्सर्जन (γ-Emission)

किसी परमाणु से α तथा β -कणों के उत्सर्जन के बाद उसका नाभिक उत्तेजित अवस्था में होता है और यह अतिरिक्त ऊर्जा जो होती है उसका उत्सर्जन γ -किरणों के रूप में करता है। γ -कणों का उत्सर्जन होने के बाद जो द्रव्यमान संख्या होती है उसमे कोई भी परिवर्तन नहीं होता तथा साथ में परमाणु क्रमांक भी अपरिवर्तित रहते हैं।

एक β -कण के उत्सर्जन पर समभारिक प्राप्त होते हैं, जबकि एक α -कण तथा β -कणों के उत्सर्जन पर समस्थानिक प्राप्त होते हैं।

 

Reaction

 

समूह विस्थापन नियम (Group Displacement Law)

सन् 1913 में वैज्ञानिक फजान (Fajan), वैज्ञानिक सोडी (Soddy) तथा वैज्ञानिक रसेल (Russel) ने एक समूह विस्थापन नियम स्थापित किया | इस नियम के अनुसार यह बताया गया कि जब किसी भी रेडियोऐक्टिव तत्व से एक α -कण उत्सर्जित होगा तो प्राप्त नया तत्व, आवर्त सारणी में मूल तत्व के समूह से दो समूह बायीं ओर विस्थापित हो जाएगा तथा यदि एक β – कण के उत्सर्जन से प्राप्त नया तत्व आवर्त सारणी मूल तत्व के समूह से एक समूह दायीं ओर विस्थापित होगा।”

उदाहरण के लिए बिस्मथ आवर्त सारणी में VA समूह में उपस्थित है क्यूंकि इसके परमाणु में से एक β-कण के उत्सर्जित के बाद बनने वाला जो नया परमाणु VI A समूह में उपस्थित होगा।

 

रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणी (Radioactive Disintegration Series)

किसी भी अस्थायी नाभिक के विघटन से उसे स्थायी नाभिक बनने में जितने भी विघटन पद आते हैं, उन सभी पदों की श्रेणी को रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणी कहा जाता है। रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणियों को चार प्रकार का बांटा गया है | रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणियाँ निम्नलिखत है |

 श्रेणी
जनक तत्व
अन्तिम स्थायी उत्पाद
थोरियम(4n) श्रेणी90Th^21282Pb^208
नैपच्यूनियम(4n + 1) श्रेणी93Np^23783Bi^209
यूरेनियम(4n +2) श्रेणी92U^23882Pb^206
ऐक्टिनियम(4n + 3) श्रेणी92U^23582Pb^207

(4n + 1) श्रेणी कृत्रिम रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणी है और यह 4n, (4n + 2), (4n + 3) रेडियोऐक्टिव विघटन श्रेणियाँ प्राकृतिक हैं । प्रत्येक प्राकृतिक विघटन श्रेणी का स्थायी उत्पाद Pb ही होता है।

 

अर्द्ध-आयु काल (Half-life Period)

अर्द्ध- आयु काल (Half-life period) के द्वारा ही किसी भी रेडियोऐक्टिव तत्व के विघटन के वेग को प्रकट किया जाता है। ‘किसी भी रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु काल (Half-life period) वह समय होता है, जिसमें उसके किसी नमूने की आधी मात्रा विघटित हो जाती है। दुसरे शब्दों में कहे तो अर्द्ध-आयु काल (Half-life period) वह समय है, जिसमें कोई भी रेडियोऐक्टिव पदार्थ अपनी प्रारम्भिक मात्रा का आधा रह जाता है उस ही हम रेडियोऐक्टिव पदार्थ का अर्द्ध-आयु काल कहते है | अर्द्ध-आयु काल को (t1/2) संकेत के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

उदाहरण के लिए

रेडियम-226 (88Ra226) की अर्द्ध-आयु 1580 वर्ष है जिसका अर्थ है कि यह 1580 वर्ष  में अपनी प्रारम्भिक मात्रा का आधा विघटित होगा।

 

किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु, विघटन स्थिरांक के बिकुल व्युत्क्रमानुपाती होती है जिसे समीकरण के द्वारा बताया गया है |

अर्थात्  t1/2 = 0.693/ λ  (जहाँ, 2. = विघटन स्थिरांक)

किसी भी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की जो अर्द्ध आयु होती है वो उसकी प्रारम्भिक मात्रा पर निर्भर नहीं करती।

उदाहरण के लिए यदि किसी भी रेड़ियोऐक्टिव समस्थानिक के 10 ग्राम की जो अर्द्ध- आयु 30 दिन की है तो इसके 1 ग्राम की अर्द्ध आयु भी 30 दिन होगी।

रेडियो समस्थानिक डेटिंग (Radioisotope Dating)

किसी भी रेडियोसक्रिय समस्थानिक की मात्रा का किसी पत्थर के नमूने, काष्ठ या जैव अवशेष में मापन करके उनकी आयु का निर्धारण करना ही रेडियो समस्थानिक डेटिंग कहलाता है। कार्बन डेटिंग के द्वारा ही किसी जीवाश्मों, किसी मृत पेड़-पौधो आदि की आयु का अनुमान व अंकन किया जाता है।

यूरेनियम डेटिंग के द्वारा निर्जीव वस्तुओं की आयु का आंकलन किया जाता है; जैसे-पृथ्वी, पुरानी चट्टानों आदि और अधिक पुरानी चट्टानों के लिए पोटैशियम आर्गन डेटिंग विधि अधिक उपयुक्त होती है। किसी भी मृत पेड़-पौधों और जानवरों की आयु को निर्धारण करने के लिए उनमें Cl4 और Ca का अनुपात ज्ञात करके ही करते हैं।

रेडियो समस्थानिकों के उपयोग (Uses of Radioisotopes)

रेडियो समस्थानिक उसे कहते है जो किसी तत्व के समस्थानिक परमाणु जो रेडियोऐक्टिवता का गुण प्रदर्शित करते हैं उन्हें कहलाते हैं। भारत एकमात्र एसा देश है जो रेडियो समस्थानिकों का सर्वाधिक उत्पादन करता है|

रेडियो समस्थानिकों के कुछ प्रमुख उपयोग है जो आपके बीच विशेष बिन्दुओं के रूप में सांझा कर रहे है :

  1. इसका उपयोग विशेषतौर पर औषधियों में ट्रेसर (Tracer) के रूप में किया जाता है। इसी विधि के द्वारा मानव शरीर में सभी प्रकार के ट्यूमर का पता लगाया जाता है।
  2. मस्तिष्क में उत्पन्न ट्यूमर को नष्ट करने में कोबाल्ट के समस्थानिक 27Co^60 का उपयोग किया जाता है। यह कैन्सर के उपचार में भी उपयोगी है।
  3. रेडियोऐक्टिव सोडियम (Na^24) के द्वारा ही शरीर में रक्त प्रवाह का वेग को मापा जाता है।
  4. थायरॉइड ग्रन्थि की क्रियाशीलता ज्ञात करने के लिए I^131 का उपयोग किया जाता है |
  5. अस्थि रोगों के इलाज में रेडियोऐक्टिव फॉस्फोरस का उपयोग किया जाता है |
  6. ऐनीमिया (अरक्तता) रोग को ज्ञात करने के लिए रेडियोऐक्टिव लोहे का उपयोग किया जाता है |


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